Wednesday, March 17, 2010


हज़ार साल जियो





होली पर में ताऊ जी से मिलने गया. जब मेने उन के चरण स्पर्श किये तो उन ने मुझे आशीर्वाद दिया " हज़ार साल जियो " सुन कर में खुश हो गया. लेकिन बाद में जब मेने सोचा की अगर ताऊ जी काआशीर्वाद सच में सच्चा साबित हो गया तो इतने साल तक में करूँ गा क्या? और उन ने आशीर्वाद में ये तोक्लीअर किया नहीं की जियूं कैसे. आज के इस दौर में ६०-७० साल जीना भी चाँद पर जाने से अधिककठिन है तो फिर १००० साल की तो सोच के ही पुरे शरीर में झुरझुरी सी आ जाती है.

प्रश्न १००० साल जीने का नहीं है प्रश्न तो यह है की जिया कैसे जाय? क्या दुनिया ने कुछ कर दिखाने केलिए लम्बी उम्र ही सब कुछ होती है? कम से कम मैं तो एसा नहीं समझता. अभी कुछ माह पहले ही कैलाशी काका तकरीबन ९५ साल के हो कर मरे, पर आज जब कोई उन का ज़िक्र करता है तो सुनने वाला अक्सर यह पूंछ लेता है की कोंन कैलासी? आज उन को मरे ६ महीने भी नहीं हुए की समाज/लोगों उन को बिसरा दिया. और फिर क्यों न समाज उन को भुला दे आखिर किया भी क्या उन्हों ने अपने ९५साला जीवन में? अपने परिवार को ही तो पाला, इस में नया क्या है? सब पालते हैं. समाज के लिए क्या किया? अगर वो १०-२०-५० साल और भी जी लेते तो भी क्या कर लेते? इतने साल धरती kaa    बोझ बढ़ाने या १०-२० मन अनाज खाने के अलावा शायद वो कुछ कर भी नहीं सकते थे, हकीकतन वो इतने सक्षम हीनहीं थे की अपने स्वार्थ से हट कर समाज को कुछ देने का प्रयास भी करते. इस का दोष अकेले उन कोदेना उन के साथ अन्याय करना है. हम सब ही तो इन्ही के जैसे है. अगर अपने गिरेबान में झांकें तो हमपायं गे की हम सब ही नहीं हमारे स्वर्गीय पूर्वज भी कैलासी काका से कोई अलग तो नहीं हैं. यहाँ पर में स्पस्ट करना चाहूँगा की मेरा उद्देश्य स्वर्गीय पूर्वजों का या उन के द्वारा छोरी गयी विरासत का अपमान करना हरगिज़ नहीं है. पर हे भी निर्विवाद सत्य है की मेरे पूर्वज जो भी छोढ़ गए वो मेरे लिए है उस सेसमाज या देश का कोई हित तो होने वाला नहीं है, फिर क्यों ये समाज उन को याद रखे? में भी जो छोरकर जाऊं गा वो मेरे परिवार के लिए होगा देश या समाज को तो उस में से फूटी कोढ़ी भी नहीं मिले गी. फिर अगर में समाज से ये अपेक्षा करता हूँ की मेरे मरने के बाद मुझे याद रखे तो ये मेरी भूल होगी.

हम सब को बहुत अच्छी तरह से पता है की हम एक मुसाफिर की तरह से हैं जो दुनिया के प्लेटफार्मअपनी गाढ़ी (मौत) का इन्जार कर रहा है. किसी की ट्रेन जल्दी आ जाती है और किसी की देर में आती है. पर जिस की भी ट्रेन आजाती है वो चला जाता है. प्लेटफ़ार्म पर शायद उस का कोई निशाँ बचता है. हाँ, पर जिस की भी ट्रेन ज्यादा देर से आती है वो प्लेटफार्म पर कुछ न कुछ गन्धगी जरूर छोर जाता है. यहाँमें अपना ही उदाहरण देता हूँ - एक बार मुझे सपरिवार कहीं जाना था ट्रेन ४ घंटे लेट हो. अतः मेरी पत्नीने प्लेटफार्म पर चादर बिछा दी हम सब वहीं पर बैठ गए. कुछ देर बाद मेरे पुत्र ने खाने की फ़र्माएश कीतो पत्नी ने कागज़ की प्लेट में पुरी सब्जी निकाल कर उसे देदी. देखा देखी मेने भी माग लिया. मुझे देने केबाद उस ने खुद भी ले लिया. नतीजतन ३ कागजी पलट ३ गिलास १ पानी की खाली बोतल और एक पूराअखबार और काफी सारी जूठन फिकने को तैयार थी. तभी अचानक ट्रेन आ गई. हम ने चादर औरसामान समेटा और ट्रेन में बैठ गए. आज जब में यह लेख लिखने बैठा तो अचानक मुझे यह वाकया यादआ गया और में सोचता हूँ की अगर में प्लेटफार्म पर इतनी देर रुक कर ट्रेन का इंतज़ार नहीं करता तोमेने वहां इतनी गन्धगी भी नहीं छोडी होता. शायद गन्धगी फैलाते समय में यह भूल गया था की जब ट्रेन (मौत) आयेगी तो मुझे अपनी फेलाई गन्धगी ( अपने पापों ) को समेटने का समय नहीं मिलेगा खेर मैं तो चला गया पर अब मुझे मालूम है की मेरे जाने के बाद जो भी वहां से गुजरा होगा वो ही मेरी फैलाई गन्धगी पर थूक कर ही गया होगा. वहां से जाने के बाद अब में सोचता हूँ की मेरे प्लेटफार्म पर रुकने सेजीने से) स्टेशन को (दुनिया को) क्या लाभ हुआ? अपने जाने (मरने) के बाद मेने अपने सह्यात्रिओंसमाज) को अपने वारे में सोचने के लिए क्या दिशा दी? ( ( ( 

यहाँ यह स्पस्ट हो जाता है की कुछ करने के लिए लंबा जीवन जरूरी नहीं होता. विवेकानंद,अभिमन्यु, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव या चंदर शेखर आज़ाद कितने साल जिए थे? इन सभी को तो ३ दशक सेज्यादा जीवन भी नहीं मिला, जीने के लिए. अगर इन में से भी बाल्यावस्था का ढेर दशक निकाल दे तो इन का कार्यशील जीवन मात्र १० - १२ साल ही बचता है, अभिमन्यु का तो इतना भी नहीं बचा. पर फिरभी इन की उपलब्धीयों के वारे कोई प्रशन चिन्ह नहीं लगा सकता. क्योंकी यहाँ जीवन की अवधी औरसार्थकता की चर्चा हो रही है अतः इन की उपलब्धीयों के वारे यहाँ पर चर्चा करना विषय वास्तु सेभटकना होगा.

कहने का अभिप्राय स्पस्ट है की जीवन की सार्थकता जीवन के लंबा होने से अधिक जीए गए जीवन शैली में है. सार्थक जीवन वही कहलाता है जिस जीवन को स्वार्थो से परे हट कर दूसरों के लिए जिया जाय. जब यह बात हमारी समझ में आजे गी तब ही हम निस्वार्थ, परोपकारी और चिर्स्मार्नीय जीवन शैली अपना सके गे और अपने से छोटों को लम्बे और सार्थक जीवन का अंतर समझा कर उन्हें एसा जीवनजीने की प्रेरणा दे सकें गे जिसे लोग सदिओं तक याद रख सकें.

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