Wednesday, July 17, 2013

राजनेतिक पतन की एक और पराकाष्ठा

आज आप जिस ओर  भी देखो उधेर ही आप को देश के स्वयंभू कर्णाधार अपने व्यक्तिगत, क्षेत्रीय, जातीय या पारिवारिक स्वार्थों की सिद्धी के लिए सरकार के सामने विरोध में  खड़े दीख जायेगेउन लोगो को इस वाट से कोई वास्ता नहीं होता के जिस मुद्दे पर वे लोग सरकार का विरोध कर रहे वे वास्तव में विरोध के लायक हैं भी या नहीं । उन को तो बस जनता को गुमराह कर के अपने आत्म प्रचार से मतलब है। कई बार तो ये  लोग जनता को इस कदर गुमराह कर देते हैं के जनता अपने क्षणिक लाभ के सम्मुख दूरगामी व स्थाई लाभों को भी नज़रन्दाज़ करने में एक पल की भी देरी  नहीं लगाते। जिस के कई उदाहरण स्वयं  आप के पास भी होंगे, यह बात दीगर है के हो सकता है  आप ने कभी इस समस्या को इस नज़रिए से देखा ना हो।

अभी कुछ दिन पूर्व ही हमारे उत्तर प्रदेश  मुख्य  मंत्री माननीय श्री अखिलेश यादव ने रास्त्र,प्रदेश तथा स्थानीय जनता के हित में आगरा से लखनऊ तक एक ६ लेन की सड़क बनाने की घोषणा की। इस सड़क के बनने  से निसंदेह प्रदेश तथा संभंधित क्षेत्र का बहुमुखी विकास होगा। यहाँ में एक बात विशेष रूप से स्पस्ट करना चाहूँगा की में समाज वादी पार्टी या यादव परिवार का या उन की नीतियों का किसी भी रूप में समर्थक नहीं हूँ किन्तु उन द्वारा समाज के हित में की गयी किसी भी कार्यवाही के विरोध को मैं रास्त्र,प्रदेश तथा स्थानीय जनता के  हित में हरगिज़ नहीं मान सकता। किन्तु कुछ राजनेतिक दल अपने दलगत, व्यक्तिगत  या राजनेतिक स्वार्थ के लिए इस परियोजना के विरुद्ध खड़े हो गए हैं। अपने इन स्वार्थो की पूर्ती के लिए उन्हों ने जनता को भी जूठे सब्ज बाग़ दिखा कर अपने समर्थन में खडा कर लिया है। अपने इस जूठे  जनसमर्थन के आधार पर आज ये कतिपय नेता अपने  जनविरोधी  व कलुषित उद्देश्यों को जनता के क्षणिक आर्थिक हितो के साथ जोड़ कर सरकार को ब्लेक मेल कर रहे हैं। यह देख कर मुझे अपार दुःख होता है की इन धोकेबाज़ राजनीतिज्ञों के वेह्कावे में आकर सीधे साधे किसान अपने क्षणिक आर्थिक लाभ के सम्मुख दूरगामी व स्थाई लाभों को भी नज़रन्दा कर राज्यद्रोह  पर अमादा हो गए हैं। इन्हीं लोगो के बहकाने पर ही किसान अपनी सामान्य खेती की जमीन की ही नहीं उसर तथा बंज़र जमीन की भी बाजार भाव से दसियों गुना अधिक कीमत माग कर परियोजना में रोड़े लगा रहे हैं। अगर उन को खेती ही करनी है तो देश हित को ध्यान में रख कर उन को चाहिए के वे लोग उचित मुआवजा ले कर अपनी भूमि सरकार को सोंप कर अन्य स्थान पर और भूमि खरीद कर अपना कृषि कार्य प्रारम्भ कर देश की प्रगति में अपना योगदान दे।

आज जब सरकार पुलिस या सेना में जवानो की भारती करती है तो यही किसान देश के नाम पर(?)(या मिलने वाले सरकारी आर्थिक लाभ के लिए) अपना तन, मन धन न्योछाबर  करने का दम भरते है, किन्तु जव वास्तविकता दे धरातल पर देश हित में त्याग की बात होती है , वो भी फ्री में नहीं अपितु अच्छे खासे मुआवज़े के बदले तो यही  किसान सौदे बाजी पर उतर आते हैं। एक तरफ तो ये कहते हैं की ये जमीन हमारी “माँ ” है हम इसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ सकते और दुसरे ही पल ये कहने लगते हैं के दस गुनी कीमत दो तो हम अपनी माँ  की भी दलाली करने को तय्यार हैं।

अपने ब्लेक मेलिग़ वाले एंगिल के समर्थन में ये लोग किसानो को भड़का कर उन के परिवार में होने वाली  स्वाभाविक मौतों का भी सौदा कर इन मौतों को सरकार की तथाकथित दमनकारी नीतियों के कारण हुई मौत बता कर उस का भी मुआवजा मागने में पीछे नहीं हटते।

अभी कुछ दिन पहले पश्चिम बंगाल में जब टाटा ने अपनी कार का प्लांट सिंग्रूर में लगाने का प्रयास किया तब भी यही नाटक हुआ था। उस का नतीज़ा क्या हुआ? टाटा ने तो अपना प्लांट कहीं ओर  लगा कर अपना काम निकाल लिया, अगर इस में उन को कोई आर्थिक नुक्सान हुआ भी तो वो उन के लिए कोई मायने नहीं रखता। इस सब में वास्तविक नुक्सान हुआ

१. राज्य का जिस ने अरबों के राजस्व का घाटा उठाया
२. उस क्षेत्र का जो बहुमुझी विकास से वंचित रह गया
३. स्थानीय जनता का जो अपने क्षेत्र में ही मिलने वाली हज़ारों नौकरियों से वंचित रह गयी
४. किसानो का जो परियोजना के अंतर्गत मिलने वाले मुआवज़े से कहीं अधिक और बेहतर  जमीन खरीद कर अपनी आर्थिक स्थिति को और सुद्रण करने से वंचित रह गए
५. स्थानीय उद्योग जगत का जो टाटा की सहायक इकाई बन कर अरबों रूपए के कारोबार से बंचित रह गयी

उस क्षेत्र में इस उद्योग के न लगने से स्थानीय जनता का क्या लाभ हुआ? मुझे तो पता नहीं आप बताइये। उत्तर शायद आप भी ढूढ़ते रह जायं गे। बास्तव में इस प्रश्न का कोई न्यायोचित उत्तर है ही नहीं, किन्तु  ये नेता लोग,  जिन के वारे में किसी कवी ने कहा है -

माइक की गर्दन पकड़ मारे लम्बी डींग,
करें प्रमाणित तर्क से गधे के दो सींग।   

वे लोग इस में कोई लोक हित, या देश हित साबित कर दे तो तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी। बड़ी बात तो यह होगी की हम उन के कुतर्कों से संतुष्ट हो कर पहले उन को फूल मालाओं से लाद दे, फिर चुनाव में उन को चुन कर दुबारा उन्हें खुद को मूर्ख बनाने के लिए आमंत्रित करें।    

   

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