Saturday, December 20, 2025

गालियां

 वैसे तो गलियां सामान्यतः अशोभनीय ही मानी जाती है, फिर भी कई बार कुछ ज्ञानी जन इन का प्रयोग किसी को प्रताडित करने के अलावा भाषाई अलंकार के रूप मे भी प्रयोग करते हैं. 

पारिभाषिक रूप से यह माना जाता है कि “किसी व्यक्ति के द्वारा उस के अंतर्मन के आक्रोश और क्रोध की अहिंसात्मक अभिव्यक्ति का नाम ही गाली होता है।” पर कुछ विचारकों के अनुसार इसे भी शाब्दिक हिंसा जैसे विश्लेषण से संबोधित करने की परंपरा की शुरुआत हो चुकी है। 

सभी साहित्यिक, सामाजिक और नीतिगत नियमों से अनभिज्ञ हमारा भारतीय समाज परंपरागत रूप से गलियों के आदान प्रदान की प्राचीन परंपरा को पूरी निष्ठा के साथ निभा रहा है। त्रेता युग मे भी शिशुपाल द्वारा श्री कृष्ण को सौ गलियां दिए जाने का विवरण शास्त्रों मे भी मिलता है. इसके अलावा दुर्वासा ऋषि अपने क्रोध और गालियों के लिए प्रसिद्ध थे। कई पुराणों और महाभारत में उनके बारे में उल्लेख है। 

रामायण में भी कई जगह गालियों का उल्लेख मिलता है। जैसे कि रावण ने सीता को लंका ले जाने के बाद कई बार गालियों का प्रयोग किया। महाभारत में दुर्योधन, दुःशासन और कर्ण जैसे पात्रों ने भी अपने विरोधियों को खुल कर गालियां दीं। दुर्योधन ने भीम को भी कई बार अपशब्द कहे।

स्कंद पुराण, भागवत पुराण और विष्णु पुराण जैसे ग्रंथों में भी गालियों के प्रयोग का वर्णन मिलता है, खासकर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष में।

पौराणिक काल की गलियां मेँ निश्चित ही मर्यादित शब्दाबली का प्रयोग किया जाता होगा. वे गलियां आज की गलियों की तरह अपने “परिष्कृत” स्वरूप मेँ नहीं होती थी. आज की इन परिष्कृत आधुनिक गालियों को अश्लील और श्लील की सीमाओं से परे सामान्यतः कई श्रेणियों में बांटा जा सकता है। जैसे

व्यक्तिगत गालियां–  ये गालियाँ व्यक्तिगत हमले के रूप में उपयोग की जाती हैं, जैसे कि किसी परिवार के सदस्यों के बारे में अपमानजनक शब्दों का उपयोग करना।

जातिगत और धार्मिक गालियाँ – ये गालियाँ जाति, धर्म, या समुदाय के आधार पर उपयोग की जाती हैं, जो अक्सर अपमानजनक और भेदभावपूर्ण होती हैं।

लिंग-आधारित गालियाँ – ये गालियाँ महिलाओं या पुरुषों के प्रति लिंग-आधारित अपमान के रूप में उपयोग की जाती हैं। इन गालियों मे लैंगिक क्रूरता का समावेश भी होता है. 

मजाकिया गालियाँ– ये गालियाँ दोस्तों और परिवार के बीच मजाकिया तरीके से उपयोग की जाती हैं, जो अक्सर हास्यपूर्ण और हल्की-फुल्की होती हैं।

अभद्र भाषा – ये गालियाँ अश्लील और अभद्र शब्दों का उपयोग करके व्यक्त की जाती हैं, जो अक्सर अपमानजनक और अश्लील होती हैं।

पारंपरिक गालीया – भारतीय समाज में पारंपरिक गालियों का महत्त्व एक जटिल और बहुस्तरीय विषय है। गालियाँ भारतीय भाषाओं और संस्कृति का एक अभिन्न अंग रही हैं, और इनका उपयोग  दोस्तों और परिवार के बीच मजाकिया तरीके से किया जा सकता है, जो सामाजिक संबंधों को मजबूत बनाने में मदद करता है।

ग्रामीण गालीया – मूल गलियो का भाव तो लगभग वही होती है किंतु इन में कुछ शब्दों का स्थानीय भाषा अनुवाद कर देने से एक ओर जहां इन में किंचित माधुर्य का तो समावेश होता जाता है पर गलियों की क्विंटीफाइड वेटेज में कोई अंतर नहीं होता। पारंपरिक गलियों के सभी नियमों का पालन करने का कोई घोषित नियम न होने के बाद भी सामान्यतः उन का पालन किया जाता है।

हाइब्रिड गलियां – इन गलियों का स्वरूप सामान्य से थोड़ा अलग होता है। इन गलियों के समभावी होने के बावजूद भी थोड़ी कम प्रचलन में होने का एक मुख्य कारण यह है कि यह गालिया काफी सोफेस्टिकेटेड होती है। विदेशी शब्दावली से सुशोभित यह गालिया सामान्यतः समाज के उच्च और सुशिक्षित समाज में ही प्रयोग की जाती हैं। यह गालियां अक्सर गलियों के सामान्य प्रयोगकर्ताओं के ऊपर बिना कोई प्रभाव छोड़ ही उन के सर के ऊपर से निकल जाती है, क्योंकी विदेशी शब्दावली के कारण यह उन के समझ मे ही नहीं आती.

सामान्यतः यह गालियां दी तो किसी को भी जा सकती है पर अधिकानशतः यह महिलाओं को ही समर्पित होती हैं, यदाकदा इन में पुरुषों प्रतिनिधित्व के नाम पर उनके अंग विशेष का भी उल्लेख हो सकता है। इन गलियों का उच्चारण अक्सर के किसी क्रोध या आक्रोश की अभिव्यक्ति के साथ वाक्यों के शाब्दिक अलंकरण के लिए आदतन भी किया जाता है। सभी प्रकार की गलियों का प्रचलन हमारे म्लेच्छ समाज में बहुत ही उन्मुक्त रूप से करने की परंपरा है। उन के समाज मेँ गालियों ले आदान प्रदान का कोई नियम ना होने के कारण उन लोगों मे इन का प्रयोग करते समय रिश्तों या भाषाई मर्यादा की गरिमा की परवाह करना क़तई आबाश्यक नहीं माना जाता.

इन्हीं गलियों कुछ उप प्रजाति भी होती है, जिसमे से कुछ का प्रयोग महिलाएं भी विभिन्न शुभकामो में धार्मिक परंपरा के रूप में करती हैं. सामान्यतः इन गालियों को देने वाले और खाने वाले दोनों ही इन का आदान प्रदान बहुत ही सम्मान, निष्ठा और प्रेम से सौहार्दपूर्वक करते है.

इन्ही गालियों का कुछ महिलाये लड़ाई के समय शाब्दिक शस्त्रों के रूप में भी करती है। तात्कालिक परिस्थितियों के आधीन कभी कभी यह गालिया पुरुषो के लिए वास्तविक शास्त्रों से भी अधिक घातक सिद्ध हो कर उन को मैदान छोड़ने के लिए वाध्य कर देती हैं. 

 इस की एक अन्य प्रजाती का प्रचलन अधिकांश बुजुर्ग समाज में ही होता है। पारंपरिक शब्दों से युक्त इन गलियों से ज्यादातर वे लोग अपने प्रियजनों को बहुत ही लाड़ और प्यार से सुशोभित करतें है। बिना किसी दुर्भावना के दी जाने वाली इन गलियों को हमारा समाज उसी भावना से अंगीकार करने का अभ्यस्त हो गया है. कई बार गाँव के युवक को इन बुजुर्गों के गालिया ना देने पर आंदोलित हो कर इन्हे उत्तेजित कर के गालियां देने के लिए बाध्य भी किया जाता है.

 किसी भी शुभ अशुभ अवसर पर गालियों के उच्चारण पर कोई संवैधानिक व्यवधान  नहीं है। हालांके, सरकार ने संविधान मे इन के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 294 के तहत गाली देना एक दंडनीय अपराध है। इस धारा के अनुसार, जो कोई सार्वजनिक स्थान पर अश्लील शब्दों का उच्चारण करता है या अश्लील गाने गाता है, वह तीन महीने तक की कैद या जुर्माने से दंडनीय होगा। इसके अलावा, धारा 504 के तहत भी गाली देने पर तीन महीने तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

इसके अलावा, यदि गाली देने वाला व्यक्ति किसी विशिष्ट व्यक्ति को निशाना बनाता है, तो धारा 154 के तहत एफआईआर दर्ज हो सकती है और सजा भी हो सकती है। कुछ मामलों में, गाली देने वाले को 7 साल तक की सजा भी हो सकती है.

 गालियों के नकारात्मक पहलू भी हैं. अक्सर गालियों का उपयोग अपमान और हिंसा को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है, जो समाज के लिए हानिकारक हो सकता है। गालियों के उपयोग सामाजिक तनाव को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है, जो समाज में विभाजन पैदा कर सकता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि गालियों का उपयोग और उनका अर्थ सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ पर निर्भर करता है, और कुछ गालियाँ कुछ समुदायों में अधिक आम या स्वीकार्य हो सकती हैं जबकि अन्य में नहीं।

गालियों के गुण दोष जानने के बाद भी गरियाने की प्राचीन परंपराओं के ध्वज बाहक का प्रतिनिधित्व करते हुए बचपन में मैंने भी बड़ी मुश्किल से अपनी मातृभाषा के साथ अंग्रेजी और उर्दू मे भी नाना प्रकार की गालीया बहुत ही परिश्रम और मनोयोग से परिवार और गुरुजनों की शारीरिक और/या मानसिक अमानवीय प्रताड़ना और हिंसा को बर्दाश्त कर के सीखी थी। अपने ज्ञानवान मित्रो के सत्संग से कुछ ही समय में सतत अभ्यास से एक विशेषज्ञ की भांति मैने एक सांस में दर्जनों गालीया धारा प्रवाह उच्चारण करने की दक्षता भी प्राप्त कर ली थी। किंतु छात्र जीवन के बाद सभ्य समाज की संगत और निरंतर अभ्यास के अभाव में अधिकांश गालियां शनै शनै विस्मृत होती जा रही है।

पर आज में हृदय से आभारी हूं फेसबुक, इंस्टा और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया का जिनके सौजन्य से, बजरिए उन की कुछ वाहियात, उबाऊ और निरर्थक पोस्ट से, मुझे बारंबार प्रेरणा मिल रही है कि मैं अपने बाल्यावस्था में संकलित और अर्जित गलियों के विलक्षण ज्ञान को उन्हें समर्पित कर दूं। किंतु मेरे फेसबुक, इंस्टा और व्हाट्सएप के मित्रो की सूची में आप जैसे सम्मानित लोगों के साथ ही रिश्तेदार और पड़ोसी आदि भी शामिल है। जिन की उपस्थिति में ऐसा कर पाने का दुस्साहस मैं नहीं कर पा रहा हूं। 

अब आप ही मुझे अपने अनुभव से सलाह दें कि क्या मैं स्वयं में इन वाहियात, उबाऊ और निरर्थक पोस्ट के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास कर के उन्हें झेल जाऊ या अपने अर्जित ज्ञान की गंगा में उन &%#@₹ को बहा दूं?

महत्वपूर्ण बात

यह ध्यान रखना जरूरी है कि इस शोध में गालियों की परिभाषा, इतिहास और उनका वर्णन समाज के ज्ञानवर्धन और मनोरंजन के लिए किया गया है, न कि उन के प्रचार करने या बढ़ावा देने के लिए।

शोध कर्ता :– 𝔻𝕚𝕜𝕤𝕙𝕚𝕥 𝔸𝕛𝕒𝕪 𝕜, 𝔸𝕘𝕣𝕒.





No comments: